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"देवदार वन (प्रथम पद) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

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देवदार वन (प्रथम पद)
 
 
नीला देवदार का वन है।
 
नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पावन है।
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जिस पर मोहित हुआ पवन है ।
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छाया के अधरों पर झुक कर,  
 
छाया के अधरों पर झुक कर,  
 
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,  
 
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,  
 
हिमगिरि में निदाध  फैला है,  
 
हिमगिरि में निदाध  फैला है,  
सुखा रहीं हरिणियां बदन हैं,
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सुखा रहीं हरिणियाँ बदन हैं,
नीला देवदार का वन है,
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नीला देवदार का वन है
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तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
 
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
 
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
 
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
 
रूक दर्पण बन,
 
रूक दर्पण बन,
 
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
 
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है।
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नीला देवदार का वन है ।
आधे ढंके चमन से लोचन,  
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आधे ढँके चमन से लोचन,  
 
घुटनों पर तिरछा है आनन,
 
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बांहें,  
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शिथिलित भौंहे, पिच्छल बाँहें,  
घन अलकों में बांधे बंधन है,
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घन अलकों में बाँधे बँधन है,
नीला देवदार का वन है।
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नीला देवदार का वन है ।
कांप उठा हरिणी का यौवन,
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हिलने लगा उठा बांहें वन,
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काँप उठा हरिणी का यौवन,
पवन प्रपीड़ित लतिका- तन पर,
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हिलने लगा उठा बाँहें वन,
किसका यह करती चिन्तन है।
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पवन प्रपीड़ित लतिका-तन पर,
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किसका यह करती चिन्तन है
 
नीला देवदार का वन है।  
 
नीला देवदार का वन है।  
 
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21:31, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण

नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पवन है ।

छाया के अधरों पर झुक कर,
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,
हिमगिरि में निदाध फैला है,
सुखा रहीं हरिणियाँ बदन हैं,
नीला देवदार का वन है ।

तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
रूक दर्पण बन,
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है ।

आधे ढँके चमन से लोचन,
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बाँहें,
घन अलकों में बाँधे बँधन है,
नीला देवदार का वन है ।

काँप उठा हरिणी का यौवन,
हिलने लगा उठा बाँहें वन,
पवन प्रपीड़ित लतिका-तन पर,
किसका यह करती चिन्तन है
नीला देवदार का वन है।