भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देवदार वन (प्रथम पद) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल }} {{KKCatKavita}} <poem> देवदार वन (प्र…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | ||
+ | |संग्रह=जीतू / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
नीला देवदार का वन है। | नीला देवदार का वन है। | ||
− | जिस पर मोहित हुआ | + | जिस पर मोहित हुआ पवन है । |
+ | |||
छाया के अधरों पर झुक कर, | छाया के अधरों पर झुक कर, | ||
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर, | तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर, | ||
हिमगिरि में निदाध फैला है, | हिमगिरि में निदाध फैला है, | ||
− | सुखा रहीं | + | सुखा रहीं हरिणियाँ बदन हैं, |
− | नीला देवदार का वन है | + | नीला देवदार का वन है । |
+ | |||
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता, | तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता, | ||
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता, | पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता, | ||
रूक दर्पण बन, | रूक दर्पण बन, | ||
किसलय वन की परियों के लखता आनन है, | किसलय वन की परियों के लखता आनन है, | ||
− | नीला देवदार का वन | + | नीला देवदार का वन है । |
− | आधे | + | |
+ | आधे ढँके चमन से लोचन, | ||
घुटनों पर तिरछा है आनन, | घुटनों पर तिरछा है आनन, | ||
− | शिथिलित भौंहे, पिच्छल | + | शिथिलित भौंहे, पिच्छल बाँहें, |
− | घन अलकों में | + | घन अलकों में बाँधे बँधन है, |
− | नीला देवदार का वन | + | नीला देवदार का वन है । |
− | + | ||
− | हिलने लगा उठा | + | काँप उठा हरिणी का यौवन, |
− | पवन प्रपीड़ित लतिका- तन पर, | + | हिलने लगा उठा बाँहें वन, |
− | किसका यह करती चिन्तन | + | पवन प्रपीड़ित लतिका-तन पर, |
+ | किसका यह करती चिन्तन है | ||
नीला देवदार का वन है। | नीला देवदार का वन है। | ||
</poem> | </poem> |
21:31, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण
नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पवन है ।
छाया के अधरों पर झुक कर,
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,
हिमगिरि में निदाध फैला है,
सुखा रहीं हरिणियाँ बदन हैं,
नीला देवदार का वन है ।
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
रूक दर्पण बन,
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है ।
आधे ढँके चमन से लोचन,
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बाँहें,
घन अलकों में बाँधे बँधन है,
नीला देवदार का वन है ।
काँप उठा हरिणी का यौवन,
हिलने लगा उठा बाँहें वन,
पवन प्रपीड़ित लतिका-तन पर,
किसका यह करती चिन्तन है
नीला देवदार का वन है।