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"प्रसंग ग़लत है / चंद्रसेन विराट" के अवतरणों में अंतर
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अवसर और प्रसंग ग़लत है । | अवसर और प्रसंग ग़लत है । | ||
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भाव, अमूर्त और अशरीरी | भाव, अमूर्त और अशरीरी | ||
वह अनुभव की वस्तु रहा है | वह अनुभव की वस्तु रहा है | ||
चित्र न कर पाया रूपायित | चित्र न कर पाया रूपायित | ||
शब्दों ने ही उसे कहा है | शब्दों ने ही उसे कहा है | ||
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उसका कल्पित रूप सही पर | उसका कल्पित रूप सही पर | ||
दृश्यमान हर रंग ग़लत है । | दृश्यमान हर रंग ग़लत है । | ||
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जब विश्वास सघन होता तब | जब विश्वास सघन होता तब | ||
संबंधो का मन बनता है | संबंधो का मन बनता है | ||
गगन तभी भूतल बनता है | गगन तभी भूतल बनता है | ||
भूतल तभी गगन बनता है | भूतल तभी गगन बनता है | ||
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सही, प्रेम में प्रण करना पर | सही, प्रेम में प्रण करना पर | ||
करके प्रण, प्रण-भंग ग़लत है । | करके प्रण, प्रण-भंग ग़लत है । | ||
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संस्तुति, अर्थ, कपट से पायी | संस्तुति, अर्थ, कपट से पायी | ||
जो भी हो उपलब्धि हीन है | जो भी हो उपलब्धि हीन है | ||
ऐसा, तन से उजला हो पर | ऐसा, तन से उजला हो पर | ||
मन से वह बिलकुल मलीन है | मन से वह बिलकुल मलीन है | ||
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शिखर लक्ष्य हो, सही बात पर | शिखर लक्ष्य हो, सही बात पर | ||
उसमें चोर-सुरंग ग़लत है । | उसमें चोर-सुरंग ग़लत है । | ||
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04:15, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
दिया गया संदर्भ सही पर
अवसर और प्रसंग ग़लत है ।
भाव, अमूर्त और अशरीरी
वह अनुभव की वस्तु रहा है
चित्र न कर पाया रूपायित
शब्दों ने ही उसे कहा है
उसका कल्पित रूप सही पर
दृश्यमान हर रंग ग़लत है ।
जब विश्वास सघन होता तब
संबंधो का मन बनता है
गगन तभी भूतल बनता है
भूतल तभी गगन बनता है
सही, प्रेम में प्रण करना पर
करके प्रण, प्रण-भंग ग़लत है ।
संस्तुति, अर्थ, कपट से पायी
जो भी हो उपलब्धि हीन है
ऐसा, तन से उजला हो पर
मन से वह बिलकुल मलीन है
शिखर लक्ष्य हो, सही बात पर
उसमें चोर-सुरंग ग़लत है ।