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"निस्पृह / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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01:37, 19 मई 2008 का अवतरण

मैंने कल के बारे में कुछ नहीं सोचा

कल के लिए कुछ भी बचाया नहीं

मैंने तो सब कुछ लुटा दिया आज ही खुले हाथ

इन वृक्षों की तरह जिन्होंने झाड़ दिए सारे पत्ते

कभी न सोचा क्या होगा कल

और खड़े हैं बिल्कुल नंगे ।