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"जब उजाले की कहीं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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'''जब उजाले की कहीं'''
 
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जब उजाले की कहीं कोई, किरण दिखती नहीं,
 
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तितमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
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हर गली में हो रहे हैं  
 
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तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
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इनद्रधनुषी करतबों में बात की बाजीगरी  
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इन्द्रधनुषी करतबों में बात की बाजीगरी  
पंख नुचने से हुयी है आज चिडिया अधमरी
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पंख नुचने से हुयी है आज चिड़िया अधमरी
 
व्यथित मन में जब नयी सम्भावना खिलती नहीं  
 
व्यथित मन में जब नयी सम्भावना खिलती नहीं  
 
तिमिरदंशित  सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
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चांदनी के नाम पर बंटती  
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हर कहीं पर दोपहर
 
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घुल गये संवेदना में
 
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स्वार्थ के मीठे जहर,
 
स्वार्थ के मीठे जहर,
 
लेखनी भी मन हमारे अब अनल भरती नहीं,
 
लेखनी भी मन हमारे अब अनल भरती नहीं,
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तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
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13:38, 29 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

जब उजाले की कहीं
जब उजाले की कहीं कोई, किरण दिखती नहीं,
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?

हर गली में हो रहे हैं
कोबरों के विषवमन
तस्करों से घिर गये हैं
चन्दनों के आज वन
मंजिलों तक जा पहुंचने की डगर मिलती नहीं,
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?

इन्द्रधनुषी करतबों में बात की बाजीगरी
पंख नुचने से हुयी है आज चिड़िया अधमरी
व्यथित मन में जब नयी सम्भावना खिलती नहीं
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?

चांदनी के नाम बंटती
हर कहीं पर दोपहर
घुल गये संवेदना में
स्वार्थ के मीठे जहर,
लेखनी भी मन हमारे अब अनल भरती नहीं,
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?