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"आप भी आइए / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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ज़हर पी जाइए और बॉंटिए अमृत सबको
 
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ज़ख्‍म भी खइए और गीत भी गाते रहिए।
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वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं भी,
 
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं भी,

16:00, 14 जून 2007 का अवतरण

रचनाकार: जावेद अख़्तर


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आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए

दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।

ज़हर पी जाइए और बॉंटिए अमृत सबको

ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।

वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं भी,

ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,

कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।