भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आप भी आइए / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।
 
दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।
  
ज़हर पी जाइए और बॉंटिए अमृत सबको
+
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
  
 
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
 
ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
  
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाऍं भी,
+
वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,
  
 
ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
 
ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

16:08, 14 जून 2007 का अवतरण

रचनाकार: जावेद अख़्तर


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~


आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए

दोस्‍ती ज़ुर्म नहीं, दोस्‍त बनाते रहिए।

ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको

ज़ख्‍म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।

वक्‍त ने लूट लीं लोगों की तमन्‍नाएँ भी,

ख्‍वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।

शक्‍ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,

कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।