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"आप भी आइए / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए। | दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए। | ||
− | ज़हर पी जाइए और | + | ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको |
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए। | ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए। | ||
− | वक्त ने लूट लीं लोगों की | + | वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी, |
ख्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए। | ख्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए। |
16:08, 14 जून 2007 का अवतरण
रचनाकार: जावेद अख़्तर
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आप भी आइए, हम को भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं, दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर, बनाते रहिए।