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+ | जाते छूटै भव-भेद-ग्यान।। | ||
+ | रघुवंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस। | ||
+ | सेवत पद-पाथोज-भृंग। | ||
+ | लावन्य बपुष अगनित अनंग।। | ||
+ | अति प्रबल मोह-तम-मारतंड। | ||
+ | अग्यान-गहन-पावक प्रचंड़।। | ||
+ | अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार। | ||
+ | सुररंजन, भंजन भूमिभार।। | ||
+ | रागासि-सर्पगन-पन्नगारि। | ||
+ | कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि।। | ||
+ | भव-जलधि-पोत चरनारबिंद। | ||
+ | जानकी-रवन आनंद-कंद।। | ||
+ | हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल। | ||
+ | निष्काम कामधुक गो दयाल।। | ||
+ | त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम। | ||
+ | कह तुलसिदास बिश्राम-धाम।। | ||
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+ | जय राम राम रमु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा। | ||
+ | रामनाम-नवनेह-मेहको, मनं हठि होहि पपीहा।। | ||
+ | सब साधन-फल कूप-सरित-सर, सागर-सलिल-निरासा। | ||
+ | रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा।। | ||
+ | गरजि,तरजि, पाषाण बरषि पवि, प्रीति परखि जिय जानै। | ||
+ | अधिक अधिक अनुराग उमंग उर, पर परमिति पहिचानै।। | ||
+ | रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम अनुरागी। | ||
+ | ह्वै गये, हैं जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी।। | ||
+ | एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं। | ||
+ | तुलसी हित अपनो अपनी दिसि, निरूपधि नेम निबाहै।। | ||
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+ | राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे। | ||
+ | घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे।। | ||
+ | एक ही साधन सब रिद्वि -सिद्वि साधि रे। | ||
+ | ग्रसे कलि-रोग जोग -संजम-समाधि रे।। | ||
+ | भलेा जो है, पोच जो है, दहिनो जो, बाम रे। | ||
+ | राम-नाम ही सों अंत सब ही को काम रे।। | ||
+ | जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे। | ||
+ | धुंवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे।। | ||
+ | राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे। | ||
+ | तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।। | ||
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13:16, 11 मार्च 2011 का अवतरण
पद 61 से 70 तक
(64)
बंदौ रधुपति करूना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान।।
रघुवंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पाथोज-भृंग।
लावन्य बपुष अगनित अनंग।।
अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक प्रचंड़।।
अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार।
सुररंजन, भंजन भूमिभार।।
रागासि-सर्पगन-पन्नगारि।
कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि।।
भव-जलधि-पोत चरनारबिंद।
जानकी-रवन आनंद-कंद।।
हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल।
निष्काम कामधुक गो दयाल।।
त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम।
कह तुलसिदास बिश्राम-धाम।।
(65)
जय राम राम रमु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-नवनेह-मेहको, मनं हठि होहि पपीहा।।
सब साधन-फल कूप-सरित-सर, सागर-सलिल-निरासा।
रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा।।
गरजि,तरजि, पाषाण बरषि पवि, प्रीति परखि जिय जानै।
अधिक अधिक अनुराग उमंग उर, पर परमिति पहिचानै।।
रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम अनुरागी।
ह्वै गये, हैं जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी।।
एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं।
तुलसी हित अपनो अपनी दिसि, निरूपधि नेम निबाहै।।
(66)
राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे।
घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे।।
एक ही साधन सब रिद्वि -सिद्वि साधि रे।
ग्रसे कलि-रोग जोग -संजम-समाधि रे।।
भलेा जो है, पोच जो है, दहिनो जो, बाम रे।
राम-नाम ही सों अंत सब ही को काम रे।।
जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे।
धुंवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे।।
राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।