भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=व…)
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
'''पद 101 से 110 तक'''
 
'''पद 101 से 110 तक'''
  
तुलसी प्रभु  
+
(101)
 +
 
 +
जँाउ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
 +
 
 +
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।
 +
 
 +
कौन देव बराइ बिरद- हित, हठि हठि अधम उधारे।
 +
 
 +
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे।।
 +
 
 +
देव, दनुज, मुनि,नाग मनुज सब, माया -बिबस बिचारे।
 +
 
 +
तिनके हाथ दासतुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।।
  
 
</poem>
 
</poem>

12:35, 11 मार्च 2011 का अवतरण

पद 101 से 110 तक

(101)

जँाउ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।

काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।

कौन देव बराइ बिरद- हित, हठि हठि अधम उधारे।

खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे।।

देव, दनुज, मुनि,नाग मनुज सब, माया -बिबस बिचारे।

तिनके हाथ दासतुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।।