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श्री केसव! क्हि न जाइ का कहिये।
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देखत रव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये।
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सून्य भीति पर चित्र , रंग  नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।
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धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे।।
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रबिकर-नीर बसै अति दारून मकर रूप तेहि माहीं।
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बदन -हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं।
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कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै ।
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तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सेा आपन पहिचानै।
  
 
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12:36, 11 मार्च 2011 का अवतरण

पद 111 से 120 तक

(111)

श्री केसव! क्हि न जाइ का कहिये।

देखत रव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये।

सून्य भीति पर चित्र , रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।

धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे।।

रबिकर-नीर बसै अति दारून मकर रूप तेहि माहीं।

बदन -हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं।

 कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै ।

तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सेा आपन पहिचानै।