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ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
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प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
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जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
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सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
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सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
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सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
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यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
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तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।
  
 
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13:48, 10 मार्च 2011 का अवतरण

पद 231 से 240 तक

  (235)
ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।