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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 20" के अवतरणों में अंतर

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जे अनुराग न राम सनेही सों।  
 
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तौ लह्यों  लाहु कहा नर-देही सो।  
 
तौ लह्यों  लाहु कहा नर-देही सो।  
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जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।  
 
जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।  
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सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।  
 
सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।  
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ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।  
 
ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।  
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राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।  
 
राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।  
लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी।
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लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी
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प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।  
 
प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।  
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अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।  
 
अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।  
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सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।
 
सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।
 
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14:26, 11 मार्च 2011 का अवतरण

पद 191 से 200 तक

(194)
जे अनुराग न राम सनेही सों।

तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।

जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।

सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।

ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।

राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।

लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी

प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।

अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।

सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।