भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 16" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
}}
+
}}  
{{KKCatKavita}}
+
[[Category:लम्बी रचना]]  
[[Category:लम्बी रचना]]
+
* [[पद 151 से 160 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 1]]
{{KKPageNavigation
+
* [[पद 151 से 160 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 2]]
|पीछे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 15
+
* [[पद 151 से 160 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 3]]
|आगे=विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 17
+
* [[पद 151 से 160 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 4]]
|सारणी=विनयावली() / तुलसीदास  
+
* [[पद 151 से 160 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
}}
+
<poem>
+
'''पद 151 से 160 तक'''
+
 
+
(151)
+
 
+
जेा पै चेराई रामकी करतो न लाजातो।
+
 
+
तौ तू दाम कुदाम ज्यों कर-कर न बिकातो।
+
 
+
जपत जीह रघुनाथको नाम नहिं अलसातो।
+
 
+
बाजीगर के सूम ज्यों खल खेह न खातेा।
+
 
+
जौ तू मन! मेरे कहे राम-नाम कमातो ।
+
 
+
सीतापति सनमुख सुखी सब ठाँव समातो।
+
 
+
राम सोहाते तोहिं जौ तू सबहिं सोहातो।
+
 
+
काल करम कुल कारनी कोऊ न कोहातो।।
+
 
+
रामनाम अनुरागही जिय जो रतिआतो।
+
 
+
स्वारथ-परमारथ-पथी तोहिं सब पतिआतो।
+
 
+
सेइ साधु सुनि समुझि कै पर-पीर पिरातो ।
+
 
+
जनम कोटिको काँदलो हृद-हृदय थिरातो।
+
 
+
भव-मग अगम अनंत है, बिनु श्रमहि सिरातो।
+
 
+
महिमा उलटे नामकी मुनि कियो किरातो।
+
 
+
अमर -अगम तनु पाइ सो जड़ जाय न जातो।
+
 
+
होतो मंगल -मूल तू, अनुकूल बिधातो।
+
 
+
जो मन प्रीति-प्रतीतिसों राम-नामहिं रातो।
+
 
+
तुलसिदास रामप्रसादसों तिहुँताप नसातो।
+
 
+
</poem>
+

18:55, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण