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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 15" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 141 से 150 तक'''
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रामभद्र! मेहिं आपनो सोच है अरू नाहीं ।
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जीव सकल संतापके भाजन जग माहीं।।
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नातो बड़े समर्थ सों इक ओर किधौं हूँ।
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तोको मोसे अति घने मोको एकै तूँ।।
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बडी़ गलानि हिय हानि है सरबग्य गुसाईं।
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कूर कुलसेवक कहत हौं  सेवककी नाईं।
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भलो पोच रामको कहैं मोहि सब नरनारी।।
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बिगरे सेवक स्वान ज्यों  साहिब-सिर गारी।।
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असमंजस मनको मिटै सो उपाय न सूझै।
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दीनबंधु! कीजै सोई बनि परै जो बूझे।।
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बिरूदावली बिलोकिये तिन्हमें कोउ हौं हौ।
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तुलसी प्रभुको परिहर्यो सरनागत सो हौ।।
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18:39, 22 अप्रैल 2011 का अवतरण