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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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| + | [[Category:लम्बी रचना]] |
− | [[Category:लम्बी रचना]] | + | * [[पद 261 से 270 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 1]] |
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| + | * [[पद 261 से 270 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 2]] |
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| + | * [[पद 261 से 270 तक / तुलसीदास/ पृष्ठ 5]] |
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− | '''पद 261 से 270 तक'''
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− | (261)
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− | श्री मेरी न बनै बनाये मेरे कोटि कलप लौं,
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− | राम! रावरे बनाये बनै पल पाउ मैं ।
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− | निपट सयाने हौ कृपानिधान! कहा कहौं?
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− | लिये बेर बदलि अमोल मनि आउ मैं।।
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− | मानस मलीन, करतब कलिमल पीन
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− | जीह हू न जप्यो नाम, बक्यो आउ-बाउ मैं।
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− | कुपथ कुचाल चल्यो, भयो न भूलिहू भलो,
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− | बाल-दसा हू न खेल्यो खेलत सुदाउ मैं।।
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− | देखा-देखी दंभ तें कि संग तें भई भलाई,
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− | प्रकटि जनाई, कियो दुरित-दुराउ मैं।
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− | राग रोष द्वेष पोषे, गोगन समेत मन,
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− | इनकी भगति कीन्हीं इनही को भाउ मैं।
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− | आगिली-पाछिली, अबहूँकी अनुमान ही तें।
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− | बूझियत गति, कछु कीन्हो तो न काउ मैं।
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− | जग कहै रामकी प्रतीति-प्रीति तुलसी हू,
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− | झूठे -साँचे आसरो साहब रघुराउ मैं।।
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− | (263)
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− | श्री नाथ नीके कै जानिबी ठीक जन-जीयकी।
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− | रावरो भरोसो नाह कै सु-प्रेम-नेम लियो,
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− | रूचिर रहनि रूचि मति गति तीयकी।।
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− | कुकृत -सुकृत बस सब ही सों संग पर्यो,
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− | परखी पराई गति, आपने हूँ कीयकी।।
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− | मेरे भलेको गोसाईं! पेचको, न सोच -संक,
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− | हौहुँ किये कहौं सौंह साँची सीय-पीयकी।।
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− | ग्यानहू-गिराके स्वामी, बाहर-अंतरजामी,
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− | यहाँ क्यों दुरैगी बात मुखकी औ हीयकी?
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− | तुलसी तिहारो, तुमहीं पै तुलसीके हित,
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− | राखि कहौं हौं तो जो पै ह्वहौं माखी घीयकी।।
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