भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन कैसे 'सीताराम' कहे! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
यों लांछना सहे! | यों लांछना सहे! | ||
− | जब ले चले सती को | + | जब ले चले सती को लक्ष्मण |
भूला कभी आपको वह क्षण! | भूला कभी आपको वह क्षण! | ||
प्राणप्रिया को दे निर्वासन | प्राणप्रिया को दे निर्वासन |
02:56, 22 जुलाई 2011 का अवतरण
मन कैसे 'सीताराम' कहे!
सिंहासन पर रहें राम, सीता वन बीच दहे!
'पढ़ते ही वह सकरुण गाथा
झुक जाता लज्जा से माथा
क्या सीता का दोष भला था
यों लांछना सहे!
जब ले चले सती को लक्ष्मण
भूला कभी आपको वह क्षण!
प्राणप्रिया को दे निर्वासन
प्रभु क्या सुखी रहे!
'विरह जगत की अंतिम गति हो
पर क्यों इतना क्रूर नियति हो
जब फूलों से भरी प्रकृति हो
आँधी तेज बहे!'
मन कैसे 'सीताराम' कहे!
सिंहासन पर रहें राम, सीता वन बीच दहे!