"संतोषम् परम् सुखम् / महेश चंद्र पुनेठा" के अवतरणों में अंतर
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असंतोष से ही फूटी पहली कविता | असंतोष से ही फूटी पहली कविता | ||
असंतोष से एक नया धर्म | असंतोष से एक नया धर्म | ||
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इतिहास के पेट में | इतिहास के पेट में | ||
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उन्हीं से गति है | उन्हीं से गति है | ||
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पहिए से जहाज तक की | पहिए से जहाज तक की | ||
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सुंदर हो पाई है यह दुनिया इतनी | सुंदर हो पाई है यह दुनिया इतनी | ||
असंतोष के गर्भ से ही | असंतोष के गर्भ से ही | ||
− | पैदा हुई संतोष करने की कुछ | + | पैदा हुई संतोष करने की कुछ स्थितियाँ । |
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सत्ता घबराती है असंतुष्टों से | सत्ता घबराती है असंतुष्टों से | ||
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− | + | क्या इसीलिए कहा गया है | |
− | क्या इसीलिए कहा गया | + | संतोषम् परम् सुखम् । |
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22:43, 26 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
पहली-पहली बार
दुनिया बड़ी होगी एक क़दम आगे
जिसके क़दमों पर
अंसतोषी रहा होगा वह पहला ।
किसी असंतुष्ट ने ही देखा होगा
पहली बार सुंदर दुनिया का सपना
पहिए का विचार आया होगा
पहली-पहली बार
किसी असंतोषी के ही मन में
आग को भी देखा होगा पहली बार गौर से
किसी असंतोषी ने ही ।
असंतुष्टों ने ही लाँघे पर्वत, पार किए समुद्र
खोज डाली नई दुनिया
असंतोष से ही फूटी पहली कविता
असंतोष से एक नया धर्म
इतिहास के पेट में
मरोड़ उठी होगी असंतोष के चलते ही
इतिहास की धारा को मोड़ा
बार-बार असंतुष्टों ने ही
उन्हीं से गति है
उन्हीं से उष्मा
उन्हीं से यात्रा पृथ्वी से चाँद
और
पहिए से जहाज तक की
असंतुष्टों के चलते ही
सुंदर हो पाई है यह दुनिया इतनी
असंतोष के गर्भ से ही
पैदा हुई संतोष करने की कुछ स्थितियाँ ।
फिर क्यों
सत्ता घबराती है असंतुष्टों से
सबसे अधिक
क्या इसीलिए कहा गया है
संतोषम् परम् सुखम् ।