भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दाल / महेश चंद्र पुनेठा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र पुनेठा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दाल बस केव…)
 
 
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
 
पापा! क्या होते हैं डुबके  
 
पापा! क्या होते हैं डुबके  
 
और मैं भी करता हूँ कोशिश  
 
और मैं भी करता हूँ कोशिश  
कुछ देर याद कर उसे बतालाने की ।
+
कुछ देर याद कर उसे बतलाने की ।
 
</poem>
 
</poem>

09:48, 15 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

दाल
बस केवल दाल
कहाँ गई भट की चुड़कानी
कहाँ पिसे भट की सब्जी
कहाँ भट का भटिया
कहाँ मसूर -गहत के डुबके
कहाँ माँस-ककड़ी से मिलकर बनी बड़ी
कहाँ गया नवौ का साग
कहाँ पिनौ का थेचुवा
जैसे इकहरी दुनिया होती जा रही
हो चली रसोई भी हमारी इकहरी

रसोई से भाग
जाने कहाँ चले गए ये स्वाद
रंग-रूप बदलकर क्या
जा बैठे हैं
पंच-सितारा होटलों में

पत्नी पूछ रही है माँ से
कैसे बनती है चुड़कानी
और बेटी पूछती मुझसे
पापा! क्या होते हैं डुबके
और मैं भी करता हूँ कोशिश
कुछ देर याद कर उसे बतलाने की ।