भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक चिड़िया उसके भीतर / पूरन मुद्गल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=पूरन मुद्गल | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
कैसे रहे होंगे वे हाथ | कैसे रहे होंगे वे हाथ | ||
− | जिन्होंने | + | जिन्होंने चिड़िया का चित्र बनाया |
− | बहुत बार उड़े होंगे/आकाश की | + | |
+ | बहुत बार उड़े होंगे / आकाश की ऊँचाईयों में | ||
कितनी बार सुनी होगी | कितनी बार सुनी होगी | ||
− | + | चिड़िया की चहक | |
बच्चे की तुतली मिठास में | बच्चे की तुतली मिठास में | ||
और | और | ||
सारी उम्र किया होगा | सारी उम्र किया होगा | ||
− | + | चिड़िया-सा घोंसला बनाने का जतन | |
+ | |||
उड़ती | उड़ती | ||
चहकती | चहकती | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 22: | ||
घोंसला बनाती चिडि़या | घोंसला बनाती चिडि़या | ||
घोंसले से गिरते कुछ तिनके | घोंसले से गिरते कुछ तिनके | ||
+ | |||
वह | वह | ||
उठाता | उठाता | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 29: | ||
करता रहता | करता रहता | ||
चिडि़या-सा घोंसला बनाने का अभ्यास | चिडि़या-सा घोंसला बनाने का अभ्यास | ||
− | क्योंकि | + | |
− | एक चिडि़या उसके | + | क्योंकि रोज़ आ बैठती |
+ | एक चिडि़या उसके भीतर । | ||
</poem> | </poem> |
12:43, 2 मई 2011 के समय का अवतरण
कैसे रहे होंगे वे हाथ
जिन्होंने चिड़िया का चित्र बनाया
बहुत बार उड़े होंगे / आकाश की ऊँचाईयों में
कितनी बार सुनी होगी
चिड़िया की चहक
बच्चे की तुतली मिठास में
और
सारी उम्र किया होगा
चिड़िया-सा घोंसला बनाने का जतन
उड़ती
चहकती
तिनके चुनती
घोंसला बनाती चिडि़या
घोंसले से गिरते कुछ तिनके
वह
उठाता
सहेजता
और
करता रहता
चिडि़या-सा घोंसला बनाने का अभ्यास
क्योंकि रोज़ आ बैठती
एक चिडि़या उसके भीतर ।