भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शंकर -स्तवन / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | शंकर -स्तवन | + | '''शंकर -स्तवन-1''' |
− | + | ||
( छंद 149, 150) | ( छंद 149, 150) | ||
− | + | ||
+ | (149) | ||
+ | |||
+ | भस्म अंग, मर्दन अनंग, संतत असंग हर। | ||
+ | सीस गंग, गिरिजा अर्धंग भुजंगबर।। | ||
+ | |||
+ | मुंडमाल , बिधु बाल भाल, डमरू कपालु कर। | ||
+ | बिबुधबृंद-नवककुमुद-चंद, सुखकंद सूलधर। | ||
+ | |||
+ | त्रिपुरारि त्रिलेाचन, दिग्बसन, बिषभोजन, भवभयहरन। | ||
+ | कह तुलसिदासु सेवत सुलभ सिव सिव संकर सरन।। | ||
+ | |||
+ | (150) | ||
+ | |||
+ | गरल -असन दिगबसन ब्यसन भंजन जनरंजन। | ||
+ | कुंद-इंदु-कर्पूर-गौर सच्चिदानंदघन।। | ||
+ | |||
+ | बिकटबेष, उर सेष , सीस सुरसरित सहज सुचि। | ||
+ | सिव अकाम अभिरामधाम नित रामनाम रूचि।ं | ||
+ | |||
+ | कंदर्प दुर्गम दमन उमारमन गुन भवन हर। | ||
+ | त्रिपुरारि! त्रिलोचन! त्रिगुनपर! त्रिपुरमथन! जय त्रिदसबर।। | ||
+ | |||
+ | |||
+ | |||
</poem> | </poem> |
19:35, 9 मई 2011 का अवतरण
शंकर -स्तवन-1
( छंद 149, 150)
(149)
भस्म अंग, मर्दन अनंग, संतत असंग हर।
सीस गंग, गिरिजा अर्धंग भुजंगबर।।
मुंडमाल , बिधु बाल भाल, डमरू कपालु कर।
बिबुधबृंद-नवककुमुद-चंद, सुखकंद सूलधर।
त्रिपुरारि त्रिलेाचन, दिग्बसन, बिषभोजन, भवभयहरन।
कह तुलसिदासु सेवत सुलभ सिव सिव संकर सरन।।
(150)
गरल -असन दिगबसन ब्यसन भंजन जनरंजन।
कुंद-इंदु-कर्पूर-गौर सच्चिदानंदघन।।
बिकटबेष, उर सेष , सीस सुरसरित सहज सुचि।
सिव अकाम अभिरामधाम नित रामनाम रूचि।ं
कंदर्प दुर्गम दमन उमारमन गुन भवन हर।
त्रिपुरारि! त्रिलोचन! त्रिगुनपर! त्रिपुरमथन! जय त्रिदसबर।।