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22:32, 10 मई 2011 का अवतरण
मैंने काग़ज़ पर कलम रखा
और शब्द ग़ायब हो गए
चले गए कहीं
तब मैंने छोड़ दिया उन्हें उनकी इच्छा पर
जब सवेरे अख़बार उठाया
तो एक शब्द को उसमें छिपा पाया
कुछ शब्द सुनाई दिए सेटलाइट चैनल पर
और कुछ मिले समकालीन पत्रिकाओं में
वे फिसल गए मेरे हाथ से
जब शाम को
मैंने उन्हें पकड़ने की कोशिश की
पर जब बच्चों को पढ़ाने बैठा
तो वे फिर झाँकने लगे
शब्दकोश से निकलकर
अपने नए और विचित्र अर्थों के साथ ।
अनुवाद : अनिल जनविजय