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"छाया मत छूना / गिरिजाकुमार माथुर" के अवतरणों में अंतर

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छाया मत छूना
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छाया मत छूना मन
 
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होता है दुख दूना मन
मन, होता है दुख दूना।
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जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
 
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी

17:50, 12 मई 2011 का अवतरण

छाया मत छूना मन होता है दुख दूना मन

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी

छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;

तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।

भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

यश है या न वैभव है, मान है या न सरमाया;

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।

प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्‍णा है,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।

जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।

दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,

क्‍या हुया जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्‍य वरण,

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।