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"जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 15" के अवतरणों में अंतर

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नभ पुर मंगल गान निसान गहागहे।
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देखि मनोरथ सुरतरू ललित लहालहे।105।
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तब उपुरोहित कहेउ सखीं सब गावन।
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चलीं लेवाइ जानकहिं भा मन भावन।।
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कर कमलनि जयमाल जानकी सोहइ।
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सीय सनेह सकुच बस पिय तन हेरइ।
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सुरतरू रूख सुरबेलि पवन जनु फेरइ।।
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लसत ललित कर कमल माल पहिरावत।
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काम फंद जनु चंदहिं बनज फँसावत। ।
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राम सीय छबि निरूपम निरूपम सो दिनु ।
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सुख समाज लखि रानिन्ह आनँद छिनु-छिनु।।
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प्रभुहि भाल पहिराइ जानकिहि लै चलीं।
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सखीं मनहुँ बिधु उदय मुदित कैरव कलीं।।
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बरषहिं बिबुध प्रसून हरषि कहि जय जए।
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सुख सनेह भरे भुवन राम गुर पहँ गए।112।
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गए राम गुरू पहिं राउ रानी नारि-नर आनँद भरे।
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जनु तृषित करि करिनी निकर सीतल सुधासागर परे।।
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कौसिकहि पूजि  प्रसंसि आयसु पाइ नृप सुख पायऊ।
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लिखि लगन तिलक समाज सजि कुल गुरहिं अवध पठायऊ।14।
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'''(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 15)'''
  
 
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11:42, 15 मई 2011 के समय का अवतरण

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 15)
 
धनुर्भंग-3

 ( छंद 105 से 112 तक)

 नभ पुर मंगल गान निसान गहागहे।
देखि मनोरथ सुरतरू ललित लहालहे।105।

तब उपुरोहित कहेउ सखीं सब गावन।
चलीं लेवाइ जानकहिं भा मन भावन।।

कर कमलनि जयमाल जानकी सोहइ।
बरनि सकै छबि अतुलित अस कबि कोहइ।।

 सीय सनेह सकुच बस पिय तन हेरइ।
 सुरतरू रूख सुरबेलि पवन जनु फेरइ।।

लसत ललित कर कमल माल पहिरावत।
काम फंद जनु चंदहिं बनज फँसावत। ।

 राम सीय छबि निरूपम निरूपम सो दिनु ।
 सुख समाज लखि रानिन्ह आनँद छिनु-छिनु।।

प्रभुहि भाल पहिराइ जानकिहि लै चलीं।
सखीं मनहुँ बिधु उदय मुदित कैरव कलीं।।

बरषहिं बिबुध प्रसून हरषि कहि जय जए।
सुख सनेह भरे भुवन राम गुर पहँ गए।112।

(छंद-14)

 गए राम गुरू पहिं राउ रानी नारि-नर आनँद भरे।
जनु तृषित करि करिनी निकर सीतल सुधासागर परे।।

कौसिकहि पूजि प्रसंसि आयसु पाइ नृप सुख पायऊ।
 लिखि लगन तिलक समाज सजि कुल गुरहिं अवध पठायऊ।14।

(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 15)

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