"जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 20" के अवतरणों में अंतर
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+ | दुरीदुरा करि नेगु सुनात जनायउ।। | ||
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+ | जुआ खेलावन कौतुक कीन्ह सयानिन्ह। | ||
+ | जीति हारि मिस देहिं गारि दुहु रानिन्ह।। | ||
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+ | सीय मातु मन मुदित उतारति आरति। | ||
+ | को कहि सकइ अनंद मगन भइ भारति।। | ||
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+ | कल्यान मो कल्यान पाइ बितान छबि मन मोहई। | ||
+ | सुरधेनु ससि सुरमनि सहित मानहुँ कलप तरू सोहई।19। | ||
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14:21, 15 मई 2011 के समय का अवतरण
।।श्रीहरि।।
( जानकी -मंगल पृष्ठ 20)
राम -विवाह -3
( छंद 145 से 152 तक)
एहि बिधि भयो बिवाह उछाह तिहूँ पुर।
देहिं असीस मुनीस सुमन बरषहिं सुर।145।
मन भावत बिधि कीन्ह मुदित भामिनि भई।
बर दुलहिनिहि लवाइ सखीं कोहबर गई।।
निरखि निछावर करहि बसन मनि छिनु छिनु।
जाइ न बरनि बिनोद मोदमय सो दिनु।।
सिय भ्राता के समय भोम तहँ आयउ।
दुरीदुरा करि नेगु सुनात जनायउ।।
चतुर नारि बर कुँवरिहि रीति सिखावहिं।
देहिं गारि लहकौरि समौ सुख पावहिं।।
जुआ खेलावन कौतुक कीन्ह सयानिन्ह।
जीति हारि मिस देहिं गारि दुहु रानिन्ह।।
सीय मातु मन मुदित उतारति आरति।
को कहि सकइ अनंद मगन भइ भारति।।
जुबति जूथ रनिवास रहस बस एहि बिधि।
देखि देखि सिय राम सकल मंगल निधि।152।
(छंद-19)
मंगल निधान बिलोकि लोयन लाह लूटति नागरीं।
दइ जनक तीनिहुँ कुँवर बिबाहि सुनि आनँद भरीं।।
कल्यान मो कल्यान पाइ बितान छबि मन मोहई।
सुरधेनु ससि सुरमनि सहित मानहुँ कलप तरू सोहई।19।
(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 20)