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"जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 25" के अवतरणों में अंतर

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बधुन सहित सुत चारिउ मातु निहारहिं।
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बारहिं बार आरती मुदित उतारहिं।185।
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करहिं निछावरि छिनु छिनु मंगल मुद भरीं।
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दूलह दलहिनिन्ह देखि प्रेम पयनिधि परीं।।
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देत पावड़े अरघ चलीं  लै सादर ।
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उमगि चलेउ आनंद भुवन भुहँ बादर।।
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नारि उहारू उघारि दुलहिनिन्ह देखहिं।
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नैन लाहु लहि जनम सफल करि लेखहिं।।
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भवन आनि सनमानि सकल मंगल किए।
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बसन कनक मनि धेनु दान बिप्रन्ह दिए।।
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जाचक कीन्ह निहाल असीसहिं जहँ तहँ।
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पूजे देव पितर सब राम उदय कहँ।
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नेगचार करि दीन्ह सबहिं पहिरावनि।
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समधी सकल सुआसिनि गुरतिय पावनि। ।
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जोरीं चारि निहारि असीसत निकसहिं।
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मनहुँ कुमुद बिधु -उदय मुदित मन बिकसहिं।।192।।
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बिकसहिं कुमुद जिमि देखि बिधु भइ अवध सुख सोभामई ।
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एहि जुगुति राम बिबाह गावहिं  सकल कबि कीरति नई। ।
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उपबीत ब्याह  उछाह जे सिय राम मंगल गावहीं।
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तुलसी सकल कल्यान ते नर नारि अनुदित पावहीं।24।
  
 
'''(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 25)'''
 
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08:51, 16 मई 2011 के समय का अवतरण

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 25)


अयोध्या में आनंद -2

 ( छंद 185 से 192 तक)

बधुन सहित सुत चारिउ मातु निहारहिं।
बारहिं बार आरती मुदित उतारहिं।185।

करहिं निछावरि छिनु छिनु मंगल मुद भरीं।
 दूलह दलहिनिन्ह देखि प्रेम पयनिधि परीं।।

देत पावड़े अरघ चलीं लै सादर ।
उमगि चलेउ आनंद भुवन भुहँ बादर।।

नारि उहारू उघारि दुलहिनिन्ह देखहिं।
नैन लाहु लहि जनम सफल करि लेखहिं।।

भवन आनि सनमानि सकल मंगल किए।
बसन कनक मनि धेनु दान बिप्रन्ह दिए।।

जाचक कीन्ह निहाल असीसहिं जहँ तहँ।
पूजे देव पितर सब राम उदय कहँ।

नेगचार करि दीन्ह सबहिं पहिरावनि।
समधी सकल सुआसिनि गुरतिय पावनि। ।

जोरीं चारि निहारि असीसत निकसहिं।
मनहुँ कुमुद बिधु -उदय मुदित मन बिकसहिं।।192।।

(छंद-24)

 बिकसहिं कुमुद जिमि देखि बिधु भइ अवध सुख सोभामई ।
 एहि जुगुति राम बिबाह गावहिं सकल कबि कीरति नई। ।

 उपबीत ब्याह उछाह जे सिय राम मंगल गावहीं।
तुलसी सकल कल्यान ते नर नारि अनुदित पावहीं।24।

(इति जानकी-मंगल पृष्ठ 25)

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