|संग्रह=इच्छाओं की पृथ्वी के रंग / राकेश प्रियदर्शी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कूड़े के ढेर से कागज काग़ज़ बीनता बच्चा
पूरा का पूरा हिंदुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है
कागज काग़ज़ बीनता बच्चा हमारी वर्तमान व्यवस्था
की पोल खोल रहा है
उसके फटे-चीटे कपड़े देख कर भी हम
स्वच्छ और विकसित होने की कर रहे हैं
घोषनाएँ अगले दशक के अंत तक
घोषनाएं अगले दशक के अंत तक उसकी भूख से सटी हुई आंतों आँतों और गालों पर सूखे हुए आंसुओं आँसुओं के निशान से
हम लिख रहे हैं भारत का इतिहास
कूड़े के ढेर से कागज काग़ज़ बीनता बच्चा बाजार के विरुद्ध एक चीख चीख़ है
हम कर रहे हैं जिस कूड़े के ढेर से घृणा
वही उसका सपना है
भारत का सपना
भारत का भविष्य और कूड़े का ढेर !
भारत का भविष्य और कूड़े का ढेर! कूड़े के ढेर से कागज काग़ज़ बीनता बच्चा कूड़े के ढेर पर सफ़ेदी की ऊंचाई ऊँचाई नाप रहा है अपनी आंखों आँखों से
कूड़े के ढेर की खोज में भटकता बच्चा
कोसों नंगे पांव पाँव चलता है पीठ से बोरा लटकाए बोरे के वजन वज़न में उसके पूरे परिवार की
रोटी की संख्या छिपी है
कहाँ-कहाँ नहीं कूड़े के ढेर से मिलती है
उसे रोटी की गंध !
कहां-कहां नहीं कूड़े के ढेर से मिलती है उसे रोटी की गंध! कूड़े के ढेर से कागज काग़ज़ बीनते बच्चे के बारे में सोचता हूंहूँ
यह हम सब पर निर्भर करता है कि वह
भविष्य का निर्माता बनेगा या विध्वंसकारक
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