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"शायद लिखें पिता / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
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बीकानेर के चारों दरवाजों से | बीकानेर के चारों दरवाजों से | ||
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ब्राह्मण को दिए कागज-कलम से | ब्राह्मण को दिए कागज-कलम से | ||
कविता- कोटगेट की । | कविता- कोटगेट की । | ||
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06:31, 16 मई 2013 के समय का अवतरण
मैं कोटगेट से
अनेक बार निकला
पिता भी निकले थे
पर नहीं लिखी कोई कविता
कोटगेट की ।
कविता में सिर्फ
कोटगेट का नाम आने से
नहीं होती कविता कोटगेट की ।
किसी कवि से
कोटगेट ने आज तक नहीं कहा
कि लिखो कविता ।
पिता के न रहने पर
मैंने अलग करते समय पत्तलें
अलग की एक पत्तल कोटगेट की ।
अब बतियाएंगे पिता
बीकानेर के चारों दरवाजों से
शायद लिखें वे
ब्राह्मण को दिए कागज-कलम से
कविता- कोटगेट की ।