भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बौने / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल विभाकर |संग्रह=सच कहने के लिए / अनिल विभाकर }…)
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
उनके पहाड़ चढने से हमें क्या एतराज
 
उनके पहाड़ चढने से हमें क्या एतराज
 +
 
पहाड़ पर चढे बौने और भी बौने नजर आते हैं
 
पहाड़ पर चढे बौने और भी बौने नजर आते हैं
  

19:47, 19 मई 2011 का अवतरण

बौने चढ गये पहाड़

तोड़ लिया जमीन से रिश्ता


उनके पहाड़ चढने से हमें क्या एतराज

पहाड़ पर चढे बौने और भी बौने नजर आते हैं


इस युग में कठिन जरूर है मेरुदंड की रक्षा

मुश्किल में है नमक की लाज

घोंसले में कब घुस जायेंगे संपोले

कठिन है कहना


सच तो यह भी है

बौने, बौने ही नजर आएंगे राजसिंहासन पर भी


बड़े होने के लिए जरूरी है खुद का कद बढाना

बड़े कद वाले भी बौनों की तीमारदारी में

जब गाते हैं राग राज, पढते हैं कसीदे

वे बौने हो जाते हैं।