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17:41, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
तुम तो
किसी पहाड़ी झरने सी
हँसती हो
तेरे हँसते ही
बनचम्पा खिल जाती है
शांत झील की सतह अचानक
हिल जाती है
पुरवाई में
शीतलता बनकर
गंसती हो
सुनकर हँसी तुम्हारी
हवा अधिक अलसाती
गदराई सरसों की काया
है अंगड़ाती
आँखों में
मीठे सपने बनकर
धँसती हो
सुनकर हँसी
मुझे भी कुछ-कुछ हो जाता है
बौराया मन स्वप्न-लोक में
खो जाता है
पोर-पोर में
उतर रही तुम
बन चुस्ती हो