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"आने वाले दिनों में कविता / नील कमल" के अवतरणों में अंतर

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थक चुकी होगी वह
 
थक चुकी होगी वह
 
नहीं पूछेंगे लोग उसे
 
नहीं पूछेंगे लोग उसे
कौड़ी के मोल
+
            कौड़ी के मोल
 
माना कि क्राँति-बीज के
 
माना कि क्राँति-बीज के
 
भ्रूण नहीं तैयार होंगे
 
भ्रूण नहीं तैयार होंगे
गर्भ में उसके
+
            गर्भ में उसके
 
उदास किसी पत्ती पर
 
उदास किसी पत्ती पर
 
रात लिखेगी मर्सिया
 
रात लिखेगी मर्सिया
 
आने वाले दिनों में
 
आने वाले दिनों में
 +
 
भोर की रोशनी भी
 
भोर की रोशनी भी
 
क़ैद हो जाएगी कल
 
क़ैद हो जाएगी कल
काली गुफ़ाओं में
+
            काली गुफ़ाओं में
 
दिहाड़ी खटते मज़दूर
 
दिहाड़ी खटते मज़दूर
 
के पपड़ियाए होठों पर
 
के पपड़ियाए होठों पर
चस्पाँ होगी वह
+
            चस्पाँ होगी वह
 
भाड़ में अकेले चने-सी
 
भाड़ में अकेले चने-सी
 
खनखनाएगी, भले वह
 
खनखनाएगी, भले वह
हार भी जाएगी
+
            हार भी जाएगी
 +
 
 
कविता फिर भी लिखी जाएगी
 
कविता फिर भी लिखी जाएगी
 
कविता की अय्यारी
 
कविता की अय्यारी
 
उनसे न तोड़ी जायेगी
 
उनसे न तोड़ी जायेगी
 
बड़े से बड़े तिलिस्म की चाबी
 
बड़े से बड़े तिलिस्म की चाबी
ढूँढ़ता वक़्त
+
            ढूँढ़ता वक़्त
 
आएगा बार-बार उसी के पास
 
आएगा बार-बार उसी के पास
 +
 
इसलिए लिखें आप
 
इसलिए लिखें आप
 
लिखते रहें कविता
 
लिखते रहें कविता
 
नक्कारख़ाने में तूती बोलती रहे ।
 
नक्कारख़ाने में तूती बोलती रहे ।
 
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00:59, 5 जून 2011 का अवतरण

थक चुकी होगी वह
नहीं पूछेंगे लोग उसे
             कौड़ी के मोल
माना कि क्राँति-बीज के
भ्रूण नहीं तैयार होंगे
             गर्भ में उसके
उदास किसी पत्ती पर
रात लिखेगी मर्सिया
आने वाले दिनों में

भोर की रोशनी भी
क़ैद हो जाएगी कल
             काली गुफ़ाओं में
दिहाड़ी खटते मज़दूर
के पपड़ियाए होठों पर
             चस्पाँ होगी वह
भाड़ में अकेले चने-सी
खनखनाएगी, भले वह
             हार भी जाएगी

कविता फिर भी लिखी जाएगी
कविता की अय्यारी
उनसे न तोड़ी जायेगी
बड़े से बड़े तिलिस्म की चाबी
             ढूँढ़ता वक़्त
आएगा बार-बार उसी के पास

इसलिए लिखें आप
लिखते रहें कविता
नक्कारख़ाने में तूती बोलती रहे ।