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"हिफ़ाज़त में कोई पलता हुआ नासूर लगता है / अशोक आलोक" के अवतरणों में अंतर
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हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन | हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन | ||
दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है | दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है | ||
− | मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में | + | मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिराग़ों को |
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है | हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है | ||
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13:46, 5 जून 2011 का अवतरण
हिफ़ाज़त में कोई पलता हुआ नासूर लगता है
सियासत से बहुत छोटा हरेक कानून लगता है
हमें तो जश्न का मौसम बड़ा मासूम लगता है
किसी बच्चे के हाथों में भरा बैलून लगता है
न जाने क्यों कभी ख़ामोशियों में दर्द चेहरे का
हथेली पर लिखा प्यारा कोई मज़मून लगता है
हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन
दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है
मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिराग़ों को
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है