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मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, | मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, | ||
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एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा। | एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा। | ||
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आ अचानक दूर से उड़ता हुआ, | आ अचानक दूर से उड़ता हुआ, | ||
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एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। | एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। | ||
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मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा, | मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा, | ||
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लाल होकर आँख भी दुखने लगी। | लाल होकर आँख भी दुखने लगी। | ||
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मूँठ देने लोग कपड़े की लगे, | मूँठ देने लोग कपड़े की लगे, | ||
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ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी। | ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी। | ||
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जब किसी ढब से निकल तिनका गया, | जब किसी ढब से निकल तिनका गया, | ||
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तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए। | तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए। | ||
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ऐंठता तू किसलिए इतना रहा, | ऐंठता तू किसलिए इतना रहा, | ||
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एक तिनका है बहुत तेरे लिए। | एक तिनका है बहुत तेरे लिए। | ||
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00:20, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।