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"तलब ग़म की खुशी से बढ़ गयी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
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तलब ग़म की ख़ुशी से बढ़ गयी है
 
ये चाहत ज़िन्दगी से बढ़ गयी है
 
 
कोई आयेगा शायद आज की रात
 
तड़प कुछ शाम ही से बढ़ गयी है
 
 
ये क्या कम है, तेरी चर्चा शहर में
 
मेरी दीवानगी से बढ़ गयी है!
 
 
तेरे जाने से क्या बीतेगी मुझ पर
 
जो बेचैनी अभी से बढ़ गयी है!
 
 
गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया!
 
मगर रौनक़ तुम्हीं से बढ़ गयी है
 
<poem>
 

02:41, 1 जुलाई 2011 के समय का अवतरण