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"गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
 
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
  
रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पलभर न खिलने दिया  
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रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पल भर न खिलने दिया  
 
आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
 
आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
 
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01:56, 9 जुलाई 2011 का अवतरण


गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम
तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या! तेरा आँगन तो ख़ुशबू से भर जायँ हम

हमने छेड़ा जहाँ से तेरे साज़ को, कोई वैसे न अब इसको छू पायेगा
तेरे होठों पे लहरा चुके रात भर, सोच क्या अब जियें चाहे मर जायँ हम!

घुप अँधेरा है, सुनसान राहें है ये, कोई आहट कहीं से भी आती नहीं
खाए ठोकर न हम-सा कोई फिर यहाँ, एक दीपक जला कर तो धर जायँ हम

तेरे हर बोल पर हम तो मरते रहे, तुझको भायी न कोई तड़प प्यार की
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम

रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पल भर न खिलने दिया
आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम