भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यों तो हमसे न कोई बात छिपायी जाती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
 
तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता  
 
तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता  
और किस तरह लगी दिल की बुझाई जाती!
+
और किस तरह लगी दिल की बुझायी जाती!
  
 
ख़ून जब अपने कलेजे का बहाते हैं गुलाब
 
ख़ून जब अपने कलेजे का बहाते हैं गुलाब
पंखड़ी तब तेरे चरणों पे चढाई जाती
+
पंखड़ी तब तेरे चरणों पे चढ़ायी जाती
 
<poem>
 
<poem>

21:55, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


यों तो हमसे न कोई बात छिपायी जाती
पर नज़र उनकी नज़र से न मिलायी जाती

उड़के ख़ुशबू तेरे बालों की तो आयी हर वक़्त
लाख हमसे तेरी सूरत थी छिपायी जाती

सैकड़ों प्यार की दुनिया तबाह करके ही
एक इंसान की तक़दीर बनायी जाती

तुझसे मिलकर तो बढ़ी है ये जलन, तू ही बता
और किस तरह लगी दिल की बुझायी जाती!

ख़ून जब अपने कलेजे का बहाते हैं गुलाब
पंखड़ी तब तेरे चरणों पे चढ़ायी जाती