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"नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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{{KKRachna
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=कुछ और गुलाब  / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
[[category: ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
  
नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है
 
बचाते हुए चोट खाई गयी है!
 
 
उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
 
हरेक शाख़ जैसे झुकायी गयी है
 
 
ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
 
महज़ चाल हमसे चलायी गयी है
 
 
कभी इसका मतलब भी तुम पर खुलेगा
 
अभी तो हरेक बात आयी-गयी है
 
 
गुलाब! अब उसी बाग़ में लौटना है
 
जहां से ये ख़ुशबू चुराई गयी है
 
<poem>
 

01:59, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण