भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
   
 
   
 
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं  
 
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं  
ऐसा है कौन, दिल में, मगर, जिसके ग़म नहीं!
+
ऐसा है कौन, दिल में, मगर जिसके ग़म नहीं!
  
 
हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
 
हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान

01:21, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

 
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं
ऐसा है कौन, दिल में, मगर जिसके ग़म नहीं!

हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
वरना जो सच कहें, तेरे वादों में दम नहीं

कुछ तो ज़रूर है तेरी बेगानगी का राज़
बेबस हो तू भले ही मगर बेरहम नहीं

यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है दोस्तो!
कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं

कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को
अब अपनी रंगों-बू का है उसको भरम नहीं