भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुहरा और उदासी / रवि प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Ravi prakash (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार =रवि प्रकाश | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
पूरा दिन कुहरे से ढका हैं! | पूरा दिन कुहरे से ढका हैं! | ||
11:22, 23 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
पूरा दिन कुहरे से ढका हैं!
जैसे कुहरा और उदासी,
एक साथ चले हों किसी समय में!
या फिर किसी ने शरारत की होगी,
पूरी सदी के चेहरे पर
कुहरा मल दिया होगा,
और हम पहचानने लगे होंगे उदासी को !
कहने लगे होंगे कि
आज मेरा मन बहुत उदास है!
या कि आज तुम बहुत उदास लग रही हो !
क्या मेरे बारे में भी ये सच है ?
क्योंकि जहाँ से ये भाषा आ रही है,
वहाँ बहुत घना कुहरा है,
जो मेरे अन्दर तक घर कर गया है!
क्योंकि इतनी बेचैनी के बाद भी,
ये भाषा बेचैनी कि नहीं, उदासी कि है!
जबकि मुझे लगता है
उदासी कि भाषा बेचैन होनी चाहिए ,
हरकत से भरी हुई !