भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ईश्वर एक लाठी है }} मैं दु...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव | |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव | ||
− | |संग्रह=ईश्वर एक लाठी है | + | |संग्रह=ईश्वर एक लाठी है / स्वप्निल श्रीवास्तव |
}} | }} | ||
08:35, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गया
देखते-देखते सरपट भाग गया ट्रक
जैसे भाग जाते हैं हत्यारे
हत्या के बाद
मुझे उस दैत्यकार ट्रक की याद है जो रौंद सकता है
मेरा घर
लेकिन उसने सिर्फ़ मुझे आहत किया
शुक्र है बच गया मेरा घर
घर के साथ बच गईं
घर से जुड़ी यादें
मैं अपना घर कहाँ बनाऊँ
जहाँ न आ सकें हमलावर
शीशे की तरह नाज़ुक
घर को पथराव से बचाते हुए
लहूलुहान हो गई है पीठ
इस पीठ पर बसा हुआ है शहर
यह शहर मेरा शहर नहीं है
जैसे कि यह घर
जो बरसों से मेरे साथ
रहते हुए भी नहीं है सुरक्षित