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"आफत की शोख़ियां हैं / दाग़ देहलवी" के अवतरणों में अंतर

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मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में..
  
 
आती है बात बात मुझे याद बार बार..
 
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कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
 
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इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर
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जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में
  
 
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे..
 
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ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में....
-दाग़ तुम तो बैठ गये ऐक आह में....
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21:55, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में.. मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में..

वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं.. मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में..

आती है बात बात मुझे याद बार बार.. कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..

इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में

मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे.. ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में....