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"जितनी भी है दीप्ति / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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धीरे धीरे झर गई मिट्टी | धीरे धीरे झर गई मिट्टी | ||
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रहा बचा केवल जड़-रेशा | रहा बचा केवल जड़-रेशा | ||
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उतर गए सब बीच राह में | उतर गए सब बीच राह में | ||
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हुई उलार अब गाड़ी | हुई उलार अब गाड़ी | ||
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हाथ आँचने उठे नागरिक | हाथ आँचने उठे नागरिक | ||
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कब की टूटी पाँत | कब की टूटी पाँत | ||
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पत्तल पकड़े रहा किनारे | पत्तल पकड़े रहा किनारे | ||
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चारों ओर अँधेरा छाया | चारों ओर अँधेरा छाया | ||
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मैं भी उठूँ जला लूँ बत्ती | मैं भी उठूँ जला लूँ बत्ती | ||
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जितनी भी है दीप्ति भुवन में | जितनी भी है दीप्ति भुवन में | ||
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सब मेरी पुतली में कसती । | सब मेरी पुतली में कसती । | ||
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12:22, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण
धीरे धीरे झर गई मिट्टी
रहा बचा केवल जड़-रेशा
अंश-अंश कर दमक घट रही
बादल सिर पर छाए
उतर गए सब बीच राह में
हुई उलार अब गाड़ी
हाथ आँचने उठे नागरिक
कब की टूटी पाँत
खाते-खाते दाँत झड़े पर
पत्तल पकड़े रहा किनारे
चारों ओर अँधेरा छाया
मैं भी उठूँ जला लूँ बत्ती
जितनी भी है दीप्ति भुवन में
सब मेरी पुतली में कसती ।