भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिम पिघला है / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) |
Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) छो (फॉर्मेट सुधार) |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
पिघला है | पिघला है | ||
नत-नयन | नत-नयन | ||
− | निमंत्रण | + | निमंत्रण |
सलिल-राग-नव भर | सलिल-राग-नव भर | ||
अंतर में। | अंतर में। |
04:31, 14 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
हिम पिघला है
कुत्सित लांछन के
आतप का
हिम
पिघला है
पिघला है
संगीत
फगुनिया रंग तरसता,
पिघले
अश्रु-कोर
चक्षु के
छलनाओं के बोल,
दंभ के
क्लांत अंक में।
भुज-बंधों की
शांत किलोलें
आरोहण
मन के मंत्रों का
भभका जाता
प्रबल गगन में,
व्योम के
श्रवण-छोर पर।
उद्वेलित मन
सागर-सा
उर्वर आँचल पर
पिघला है
नत-नयन
निमंत्रण
सलिल-राग-नव भर
अंतर में।
चक्रवात में
खंड
शिला के,
सतत घुटन से
प्राणों का
निष्क्रमण
कायकी हिम-वसनों से,
अविरल, अविकल
मधु-तरंग की
उच्छ्वासों का
सतत निरंतर शोर
ओर न छोर
भ्रांत के
भँवर-जाल को तोड़
नदी में
हिम पिघला है।