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"समय (7) / मधुप मोहता" के अवतरणों में अंतर

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('समय एक स्वपन है, सुरा से, सुंदरियों से, संपन्न स्वर्ग ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
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समय एक स्वपन है,
 
समय एक स्वपन है,
 
सुरा से, सुंदरियों से,
 
सुरा से, सुंदरियों से,

15:03, 12 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण


समय एक स्वपन है,
सुरा से, सुंदरियों से,
संपन्न स्वर्ग का।
समय स्वर्ग का सोपान है।

समय आनुवंशिक लड़ी
की पहली कड़ी है,
जीवित, समय से जीवाश्म हो जाता है।
समय के विघटन से सृजन होता है।
ऊर्जा के अपरिमित स्त्रातों का, ऊष्मा के अजर संचय का
समय ही नाभिक है, समय ही नभ।
समय में युक्त हैं कितने जीवंत कथानक,
समाविष्ट हैं सभ्यताएं, संस्कृतियां,
सत्य का माहात्म्य, अर्थ, अनर्थ।

समय ही तथ्य है, ऋत है, सम्यक् है।
समय संहिता में उदात्त है,
कितने षड्ज, ऋषभ, गांधार, पंचम, धैवत और निषाद।
कितने मरीचि, अत्रि, पुलह, पुलत्सय, ऋत, अंगिरा और
वषिष्ठ, समय से प्रदीप्त हैं।
समय ही देखता है, सुनता है
गाता है, छूता है, खाता है
समय हर इरंद्रिय से परे है,
समय ही ध्यान है।
कितने जंबू, कुश, प्लक्ष, शाल्मलि
क्रौंच, शाक और पुष्कर, समय ने
लिखे हैं, मिटाए हैं,
समय देशों, साम्राज्यों, उपनिवेशों की ओखली है।

ब्रह्मांड समय की धुरी पर घुमता है
समय की नींव का संबल पाकर अध्यात्म,
मंदिर बन जाता है,

समय ही लिखता है बाढ़ की,
भूख की भूमिका, संततियों का
भाग्य।
समय ही सुरसा है।
समय ही जल को, वायु को
मेघ को, सूर्य को देवत्व देता है।
समय एक कल्पनातीत इश्वर है
समय के निर्बाध प्रवाह को
मत बांटो पलों, क्षणों, पक्षों, पर्वों
वर्षों और युगों में। खंडों में।
खंडित समय, असमय हो जाता है,
आयु बन जाता है।
परिमित समय, अवस्था बन जाता है।
मत तोड़ो समय की समाधि,
भग्न समय,
कल्प से काल बन जाता है।
समय जो शैशव था, जरा बन जाता है।
समय ही नश्वर और अनश्वर,
अमृत और मृत,
चेतन और अचेतन
के बीच का अंतराल है।
समय ही यम है, समय ही नियम।

समय प्रयाश्चित है,
समय ही पश्चाताप,
समय ही संताप है, समय ही सांत्वना।
समय ही विराम है, राम है
समय एक सैनिक की सौगंध है,
पत्नी का व्रत।
समय है तो सांस को आस है,
समय ही पानी है, समय ही प्यास है।
बैंगनी, नीले, हरे, पीले, नारंगी, लाल और गुलाबी,
बचपन के सतरंगी सपनों को भूलो मत, याद करो।
यहां से, मेरे साथ इंद्रधनुष को देखो,
जो कौंधती बिजलियों में, वर्षा की धुन पर,
समय का गीत गाता है।

मीठी-मीठी ठंड है, भीनी-भीनी गंध है
समय की डोर का ओर है न छोर है,
मेरी छत पर आओ,
पतंग उड़ाओगे ?