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"शरद के बादल / पंकज सिंह" के अवतरणों में अंतर

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फिर सताने आ गए हैं
 
फिर सताने आ गए हैं
  

01:18, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

फिर सताने आ गए हैं

शरद के बादल


धूप हल्की-सी बनी है स्वप्न

क्यों भला ये आ गए हैं

यों सताने

शरद के बादल


धैर्य धरती का परखने

और सूखी हड्डियों में कंप भरने

हवाओं की तेज़ छुरियाँ लपलपाते

आ गए हैं

शरद के बादल


(रचनाकाल : 1966)