भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाँच जोड़ बाँसुरी / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल }} पाँ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
− | वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो | + | वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा |
मन उठ चलने को हो रहा | मन उठ चलने को हो रहा |
23:17, 20 सितम्बर 2007 का अवतरण
पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी