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"सूना घोंसला / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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24 मार्च 2010
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8 मई 2010
 
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12:50, 5 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

गाते रहते पाखी
हरे कभी तो झरे पत्तों में
                      कभी
—कितने सुरों में
खिलता रहता जंगल

और एक यह मैं हूँ
उजड़ी हुई बगिया में
सूना घोंसला कोई—
तिनके बिखेरती रहती है
                     जिसके
हवा चुपचाप

8 मई 2010