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"प्रथम प्रभात / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही, | मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही, | ||
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अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में | अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में | ||
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नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा, | नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा, | ||
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बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही | बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही | ||
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स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था | स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था | ||
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अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से | अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से | ||
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अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी, | अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी, | ||
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(फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)- | (फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)- | ||
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आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें, | आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें, | ||
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खूली आँख, आनन्द-हृदय दिखला दिया | खूली आँख, आनन्द-हृदय दिखला दिया | ||
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मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँजके, | मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँजके, | ||
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मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा | मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा | ||
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वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की, | वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की, | ||
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प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में, | प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में, | ||
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कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो, | कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो, | ||
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शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया | शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया | ||
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सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में, | सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में, | ||
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मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया, | मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया, | ||
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विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा | विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा | ||
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मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था | मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था | ||
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01:10, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण
मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही,
अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में
नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा,
बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही
स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था
अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से
अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी,
(फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)-
आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें,
खूली आँख, आनन्द-हृदय दिखला दिया
मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँजके,
मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा
वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की,
प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में,
कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो,
शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया
सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में,
मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया,
विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा
मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था