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|रचनाकार=महादेवी वर्मा
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विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!
 
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास
 
अश्रु चुनता दिवस इसका; अश्रु गिनती रात;
 
जीवन विरह का जलजात!
आँसुओं का कोष उर, दृग अश्रु की टकसाल,
 
तरल जल-कण से बने घन-सा क्षणिक मृदुगात;
 
जीवन विरह का जलजात!
अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास,
 
अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात;
 
जीवन विरह का जलजात!
काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार
 
पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात;
 
जीवन विरह का जलजात!
 
जो तुम्हारा हो सके लीला-कमल यह आज,
 
खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात;
 
जीवन विरह का जलजात!
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