भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिल्लियॉ / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला |संग्रह=टूटते सि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<strong>बिल्लियॉ </strong>
 
<strong>बिल्लियॉ </strong>
  
<blockquote>खूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को </blockquote>
+
खूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को  
<blockquote>एक पिंजरें में कैद कर लिया था हमने ,</blockquote>
+
एक पिंजरें में कैद कर लिया था हमने ,
<blockquote>क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,</blockquote>
+
क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,
<blockquote>इस पिंजरे में हर रोज दिये जाते थे</blockquote>
+
इस पिंजरे में हर रोज दिये जाते थे
<blockquote>वह सभी संसाधन </blockquote>
+
वह सभी संसाधन  
<blockquote>जो हमारी नजर में</blockquote>
+
जो हमारी नजर में
<blockquote>जीवन के लिये जरूरी हैं,</blockquote>
+
जीवन के लिये जरूरी हैं,
<blockquote>लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे ने</blockquote>
+
लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे ने
<blockquote>नोच दिये हैं चिडियों के पंख</blockquote>
+
नोच दिये हैं चिडियों के पंख
<blockquote>सहमी और गुमसुम हैं </blockquote>
+
सहमी और गुमसुम हैं  
<blockquote>आज सारी चिडिया </blockquote>
+
आज सारी चिडिया  
<blockquote>और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में</blockquote>,
+
और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में
<blockquote>पहले कई बार उडान के लिये मचलते</blockquote>
+
पहले कई बार उडान के लिये मचलते
<blockquote>"चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर </blockquote>
+
चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर  
<blockquote>और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ </blockquote>
+
और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ  
<blockquote>मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर </blockquote>
+
मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर
<blockquote>कितना उडा जा सकता है</blockquote>
+
कितना उडा जा सकता है
<blockquote>आखिर क्यों नहीं सहा जाता</blockquote>
+
आखिर क्यों नहीं सहा जाता
<blockquote>अपने पिंजरे में रहकर भी</blockquote>
+
अपने पिंजरे में रहकर भी
<blockquote>खुश रहने वाली</blockquote>
+
खुश रहने वाली
<blockquote>चिड़ियों का चहचहाना</blockquote>
+
चिड़ियों का चहचहाना  
 
</poem>
 
</poem>

19:48, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण

बिल्लियॉ

खूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को
एक पिंजरें में कैद कर लिया था हमने ,
क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,
इस पिंजरे में हर रोज दिये जाते थे
वह सभी संसाधन
जो हमारी नजर में
जीवन के लिये जरूरी हैं,
लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे ने
नोच दिये हैं चिडियों के पंख
सहमी और गुमसुम हैं
आज सारी चिडिया
और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में
पहले कई बार उडान के लिये मचलते
चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर
और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ
मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर
कितना उडा जा सकता है
आखिर क्यों नहीं सहा जाता
अपने पिंजरे में रहकर भी
खुश रहने वाली
चिड़ियों का चहचहाना