"प्रेमा नदी / सोम ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं कभी गिरता - संभलता | + | मैं कभी गिरता - संभलता हूँ |
− | उछलता -डूब जाता | + | उछलता -डूब जाता हूँ |
तुम्हारी मधुबनी यादें लिए | तुम्हारी मधुबनी यादें लिए | ||
− | प्रेमा नदी | + | प्रेमा नदी |
− | यह बड़ी जादूभरी , टोने चढ़ी है | + | यह बड़ी जादूभरी, टोने चढ़ी है |
− | फुटती है सब्ज़ धरती से , मगर | + | फुटती है सब्ज़ धरती से, मगर |
− | नीले गगन के साथ होती है | + | नीले गगन के साथ होती है |
− | रगो में दौड़ती है सनसनी बोती हुई | + | रगो में दौड़ती है सनसनी बोती हुई |
− | मन को भिगोती हुई | + | मन को भिगोती हुई |
उमड़ती है अंधेरी आँधियो के साथ | उमड़ती है अंधेरी आँधियो के साथ | ||
− | उजली प्यास का मारुथल पिए , प्रेमा नदी | + | उजली प्यास का मारुथल पिए, प्रेमा नदी |
भोर को सूर्या घड़ी में | भोर को सूर्या घड़ी में | ||
खुश्बुओं से मैं पिघलता हू | खुश्बुओं से मैं पिघलता हू | ||
− | उबालों को हटाते ग्लेशियर लादे हुए | + | उबालों को हटाते ग्लेशियर लादे हुए |
− | हर वक़्त बहता हू | + | हर वक़्त बहता हू |
रुपहली रात की चंद्रा-भंवर में | रुपहली रात की चंद्रा-भंवर में | ||
घूम जाता हूँ | घूम जाता हूँ | ||
− | बहुत खामोश रहता हूँ | + | बहुत खामोश रहता हूँ |
मगर वंशी बनती है मुझे | मगर वंशी बनती है मुझे | ||
अपनी छुअन के साथ | अपनी छुअन के साथ | ||
हर अहसास को गुंजन किए | हर अहसास को गुंजन किए | ||
− | प्रेमा नदी | + | प्रेमा नदी |
यह सदानीरा पसारे हाथ | यह सदानीरा पसारे हाथ | ||
मेरे मुक्त आदिम निर्झरों को माँग लेती है | मेरे मुक्त आदिम निर्झरों को माँग लेती है | ||
− | कदंबों तक झूलाती है | + | कदंबों तक झूलाती है |
− | + | निचुड़ती बिजलियाँ देकर | |
− | भरे बादल उठाती है | + | भरे बादल उठाती है |
− | + | बिछुड़ते दो किनारे को | |
− | हरे एकांत का सागर दिए | + | हरे एकांत का सागर दिए |
प्रेमा नदी | प्रेमा नदी | ||
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11:48, 24 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
मैं कभी गिरता - संभलता हूँ
उछलता -डूब जाता हूँ
तुम्हारी मधुबनी यादें लिए
प्रेमा नदी
यह बड़ी जादूभरी, टोने चढ़ी है
फुटती है सब्ज़ धरती से, मगर
नीले गगन के साथ होती है
रगो में दौड़ती है सनसनी बोती हुई
मन को भिगोती हुई
उमड़ती है अंधेरी आँधियो के साथ
उजली प्यास का मारुथल पिए, प्रेमा नदी
भोर को सूर्या घड़ी में
खुश्बुओं से मैं पिघलता हू
उबालों को हटाते ग्लेशियर लादे हुए
हर वक़्त बहता हू
रुपहली रात की चंद्रा-भंवर में
घूम जाता हूँ
बहुत खामोश रहता हूँ
मगर वंशी बनती है मुझे
अपनी छुअन के साथ
हर अहसास को गुंजन किए
प्रेमा नदी
यह सदानीरा पसारे हाथ
मेरे मुक्त आदिम निर्झरों को माँग लेती है
कदंबों तक झूलाती है
निचुड़ती बिजलियाँ देकर
भरे बादल उठाती है
बिछुड़ते दो किनारे को
हरे एकांत का सागर दिए
प्रेमा नदी