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"हाइकु 81-100 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ 
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<poem>
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81
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तुम जो बोलीं
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बातों के दरिया में
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मिसरी घोली ।
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82
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समेटा गया -
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न सुधियों का जाल
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सिहरा ताल ।
+
83
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छोटी-सी चूक
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अधूरा -सा जीवन
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बाकी थी हूक ।
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84
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दूर है गाँव
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बची केवल धूप
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कहीं न छाँव ।
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85
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वही है मीत
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रोम -रोम में बसी
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जिसके प्रीत ।
+
86
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बीते बरसों
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अभी तक मन में
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खिली सरसों ।
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87
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परदेस में
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उठी तुमको पीर
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मैं था अधीर ।
+
88
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माँगी तुमने
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जब रब से दुआ
+
मन  था चुआ ।
+
89
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माथा जो छुआ
+
हृदय-सागर में
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जाने क्या हुआ ।
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90
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जागी उमंग
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बज उठी  हो जैसे
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जलतरंग ।
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91
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समय गया
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कुछ पल ठहर
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उठी लहर ।
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92
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भीगे थे कूल
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लहरों के आँगन
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बिछे दुकूल ।
+
93
+
मन की मीन
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सुधियों -सी घिरती
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रही तिरती ।
+
94
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व्याकुल मन
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दो पल का मिलन
+
यही जीवन ।
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95
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जीभर जियो
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मिला जो प्रेमरस
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बाँट दो , पियो ।
+
96
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नयन-जल
+
पिंघला गई कोई
+
पीर अतल ।
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97
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पोंछो ये पलकें
+
मोतियों भरे हैं  ये
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सागर छलके ।
+
98
+
लुटाओ नहीं
+
अनमोला खज़ाना
+
मुश्किल पाना ।
+
99
+
गंगा की धार
+
है बहनों का प्यार
+
बही बयार।
+
100
+
पावन  मन
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जैसे नील गगन
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नहीं है छोर ।
+
-0-
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</poem>
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19:00, 18 मई 2012 के समय का अवतरण